नव प्रशासन
(New Public Administration – NPA )
1960 के दशक के अन्तिम वर्षों में अमेरिकी विद्वानों की नई पीढ़ी ने अमेरिकी लोकप्रशासन के क्षेत्र में एक नए आन्दोलन का सूत्रपात किया । इसे ‘नवीन लोकप्रशासन’ के नाम से जाना गया। 1960 के दशक में उत्पन्न अमेरिकी बुद्धिजीवियों के विद्रोह और सामाजिक-आर्थिक उथल-पुथल में इस आन्दोलन की पैदाइश दिखाई देती है। 1960 व 70 के दशक में यह आन्दोलन अपनी परवान पर था, आज यह अपनी चमक खो चुका है। फिर भी लोकप्रशासन के क्षेत्र में इसका प्रभाव काबिलेगौर है। नव लोक प्रशासन का जन्म भी यू.एस.ए. में हुआ। ●
1960 के दशक (1960-70) के उत्तरार्द्ध में ड्वाइट वाल्डो के नेतृत्व में हुए ‘मिन्नोब्रुक सम्मेलन’ (1968) ने नव लोक प्रशासन को जन्म दिया।
नव लोक प्रशासन का जनक ड्वाइट वाल्डो को माना जाता है। अन्य विद्वान हैं- फ्रैंक मेरिनी, जॉर्ज फ्रेडरिक्सन, चार्ल्स लिण्डब्लॉम, विन्सेन्ट ऑस्ट्राम।
उद्भव के कारण
अमेरिकी समाज
1960 के दशक में अमेरिकी समाज शीतयुद्ध, आणविक अस्त्रों से उत्पन्न आतंक, अश्वेतों के नागरिक अधि कार आन्दोलन, सामाजिक विभेद व वियतनाम सिंड्रोम का सामना कर रहा था।
मिन्नोब्रुक प्रथम (1968)
मिन्नोबुक सम्मेलन सिराक्यूज विश्वविद्यालय, न्यूयार्क के मिन्नोब्रुक कॉन्फ्रेंस हॉल में हुआ। सितम्बर 1968 में ड्वाइड वाल्डो की अध्यक्षता में हुए मिन्नोब्रुक सम्मेलन में युवा विद्वान एकत्र हुए तथा इन्होंने रूढ़िवादी व परम्परागत लोकप्रशासन तथा बहुलवादी राजनीति शास्त्र की आधारभूत मान्यताओं को ललकारा। इसी मिन्नोब्रुक सम्मेलन ने नवीन लोकप्रशासन को जन्म दिया जो सामाजिक न्याय व सामाजिक समस्याओं के प्रति ज्यादा संवेदनशील था तथा मूल्य-मुक्त व मूल्य निरपेक्षता का विरोधी था।
इस सम्मेलन के लिए दो कारक मुख्य रूप से उत्तरदायी माने जाते हैं-प्रथम 1960 के दशक में अमेरिकी समाज, राजनीति व प्रशासन में चल रही उथल-पुथल दूसरा ड्वाइट वाल्डो का 1968 में पब्लिक एड्मिनिस्ट्रेशन रिव्यू नामक जर्नल में छपा लेख-“Public Admn-in a time of turbulence” (यही लेख 1971 में पुस्तक के रूप में छपा )। इस लेख में वाल्डो ने लोक प्रशासन के सम्मुख आए ‘पहचान के संकट’ (Identity crisis) की चर्चा की। में
नव लोक प्रशासन के जन्म व वृद्धि में निम्नलिखित घटनाएँ महत्त्वपूर्ण है –
1. अमेरिकी समाज में व्याप्त असन्तोष व तनाव |
2. लोक सेवाओं सम्बंधी उच्च शिक्षा पर हनी प्रतिवेदन – नवम्बर, 1967 जॉन सी. हनी । 3. लोक प्रशासन के सिद्धांत व व्यवहार संबंधी फिलाडेल्फिया सम्मेलन – (दिसम्बर, 1967 ) – अध्यक्ष – जेम्स सी. चार्ल्सवर्थ।
4. मिन्नोब्रुक सम्मेलन (प्रथम) – सितम्बर, 1968
अध्यक्ष- डवाइट वाल्डो ।
यह युवा विद्वानों का सम्मेलन था। इसका मिजाज उग्र व क्रांतिकारी था । यह व्यवहारवाद विरोधी था। Young Turks का सम्मेलन ।
इस सम्मेलन ने चार लक्ष्यों पर जोर दिया जो कि नवीन लोक प्रशासन के लक्ष्य (Goals) बनेप्रासंगिकता
2.
मूल्य
1.
परिवर्तन
5. फ्रैक मेरिनी द्वारा सम्पादित पुस्तक- ‘Towards a New Public Administration- Minnowbrook Perspective’1971 यह नवीन लोक प्रशासन पर प्रथम पाठ्य पुस्तक थी। –
6. ड्वाइट वाल्डो द्वारा सम्पादित पुस्तक- ‘Public Administration in a time of Turbulence’- 1971 (उथल-पुथल के काल में लोक प्रशासन ) ।
नवीन लोक प्रशासन के नारे व लक्ष्य
” वाल्डो के शब्दों में- ‘नवीन लोक प्रशासन मानकात्मक सिद्धांत (Normative theory), दर्शन (philosophy), सामाजिक प्रतिबद्धता (Social consern) तथा सक्रियतावाद (Activism) की दिशा में एक प्रकार का क्रांतिघोष है । ” जॉर्ज एच. फ्रेडरिक्सन ने 1980 में प्रकाशित अपनी प्रसिद्ध कृति “New public Administation” में लिखा है”यह जातिगत (Generic) की अपेक्षा जनोन्मुखी (Public) अधिक है, यह विवरणात्मक (Descriptive) कम और निर्देशात्मक (prescriptive) अधिक है, यह संस्था – उन्मुखी कम व ग्राहक – उन्मुखी अधिक है, यह तटस्थ कम और मूल्यपरक अधिक है, कम वैज्ञानिक नहीं है । “
नवीन लोक प्रशासन के चार नारे या लक्ष्य
प्रासंगिकता (
Relevance) इसका तात्पर्य है कि लोक प्रशासन का ज्ञान व शोध समाज की आवश्यकताओं के सन्दर्भ में ‘प्रासंगिक’ व ‘संगतिपूर्ण’ हो अर्थात् सामाजिक समस्याओं के निदान व सामाजिक परिवर्तनों के प्रति इसकी भूमिका महत्वपूर्ण हो । Rhay मूल्य (Value) नवीन लोक प्रशासन स्पष्ट रूप से आदर्शात्मक व मानकात्मक (Normative) है। यह परम्परागत लोक प्रशासन के मूल्यों को छुपाने तथा प्रक्रियात्मक तटस्थता को अस्वीकार करते हुए न्याय, समता, शोषण मुक्ति जैसे मूल्यों को महत्व देता है। निग्रो व निग्रोका उदय हुआ है, मूल्यों व नैतिकता के प्रशासन ने ‘प्रबंधोखी लोक प्रशासन’ और जब से नवीन लोक प्रशासन प्रश्न लोक प्रशासन के मुख्य विषय रहे है।” इस प्रकार नवीन लोक प्रशासन ‘व्यवहारवादी राजनीति विज्ञान’ के मूल्य निरपेक्ष दृष्टिकोण को खारिज कर दिया।
सामाजिक समता (Social Equality)
● नवीन लोक प्रशासन समाज के शोषित, वंचित व हाशियाकृत वर्गों के लिए सामाजिक न्याय व समानता की स्थापना करना चाहता है।
परिवर्तन (Change)
यह समाज में यथास्थिति शोषण, सामाजिक व आर्थिक विषमता को समाप्त कर समतायुक्त व शोषणविहिन समाज की स्थापना करना चाहता है।
रॉबर्ट टी. गोलम्ब्यूव्स्की (Robert T. Golembiewski) ने NPA के तीन विरोधी लक्ष्य (Anti Goals) बताये हैं
1. यह प्रत्यक्षवाद (Positivism),
तार्किकता व मूल्य
-निरपेक्षता का विरोधी है।
2. यह तकनीक विरोधी है। यह तकनीक पर मानव की भावनात्मकता – सृजनात्मकता का बलिदान नहीं चाहता। 3. यह नौकरशाही व पदसोपान विरोधी है।
नवीन लोक प्रशासन की विशेषताएँ –
(i) यह लोक प्रशासन की मूल्य मुक्त या मूल्य-निरपेक्ष व्याख्या को अस्वीकृत करता है। रॉबर्ट टी. गोलम्ब्यूव्स्की (Robert T. Golembiewski) के अनुसार- “नव लोक प्रशासन के भाष्यकारों का केन्द्रीय निशाना प्रत्यक्षवादी (Positivist) नस्ल का मूल्य-मुक्त (Value -free) विज्ञान है । “
4.
3.
1.
सामाजिक
2.
) यह संगठन के बारे में यांत्रिकता का विरोधी है। (iv) ) यह मानवीय संबंधों तथा प्रशासन एवं सामाजिक परिवर्तनों के बारे में नए सृजनात्मक दृष्टिकोण पर बल देता है। इसके प्रमुख अध्ययन बिन्दु है – सामाजिक समता, सहभागिता, सक्रियता, विकेन्द्रीकरण व मानवता के प्रति अगाध प्रेम।
(iii
(v
(vi) ये लोक प्रशासन को प्रगतिशील विज्ञान बनाना चाहते है।
(vii)
यह अन्तः अनुशासनात्मक है।
(viii)
जहाँ परम्परागत लोक प्रशासन नकारात्मक, तथ्यात्मक, मूल्य निरपेक्ष, तटस्थ व यथास्थितिवादी था वहीं नवीन लोकप्रशासन सकारात्मक, मूल्यात्मक, सामाजिक रूप से सक्रिय, मानवीय व भागीदारी है। अब तक तीन मिन्नोब्रुक सम्मेलन हो चुके हैं
1. प्रथम मिन्नोब्रुक सम्मेलन- 1968, अध्यक्ष- ड्वाइट वाल्डो। 2. द्वितीय मिन्नोब्रुक सम्मेलन- 1988, अध्यक्ष – जार्ज फ्रेडरिक्सन। 3. तृतीय मिन्नोब्रुक सम्मेलन – 2008, प्रथम मिन्नोब्रुक – 1968 अध्यक्ष- ड्वाइट् वाल्डो सहभागी-युवा Turks) राजनीति विज्ञानी तृतीय मिन्नोब्रुक – 2008 अधयक्ष – प्रो. रोजमैरी ओ’ लीरी इसका शैक्षणिक दायरा भी विस्तृत था (Young अध्यक्ष – प्रो. रोजमैरी ओ लीरी। मिन्नोब्रुक सम्मेलनों में अन्तर द्वितीय मिन्नोब्रुक – 1988 अध्यक्ष – जॉर्ज फ्रेडरिक्सन अकादमिक दायरा विस्तृत था- युवा व वरिष्ठ, राजनीति विज्ञानी, अर्थशास्त्री, लोक नीतिकर्ता सभी शामिल | विज्ञान विधि विधिक यह अमेरिकी समाज की उथल-पुथल के काल में आयोजित हुआ। यह सूचना क्रांति व मोबाइल क्रांति के दौर में आयोजित हुआ। इसमें प्रासंगिकता, मूल्यों, विश्वव्यापी सपी । आर्थिक इसमें बहुसंगठनात्मकता, साझा समता व परिवर्तन पर बल दिया गया। हुआ। दिया गया। यह व्यवहारवाद विरोधी व उग्र, क्रांतिकारी व अति आशावादी था। इसमें संवैधानिक व विधिक परिप्रेक्ष्य में नेतृत्व, प्रौद्योगिकी, नीति निर्माण तथा आर्थिक मुद्दों पर ध्यान दिया गया। इसमें ‘नियंत्रित आशावादिता’ थी।
इसकी थीम थी-“लोक प्रशासन, लोक प्रबंधा तथा लोक सेवा का सकालीन विश्व में भविष्य । “
फ्रेडरिक्सन–‘‘मिन्नोब्रुक प्रथम जहाँ कलह प्रिय, विवादास्पद, व क्रांतिकारी था वहीं मिन्नोब्रुक द्वितीय अधिक सौम्य व व्यवहारिक था।”
तीनों सम्मेलनों की चिन्तन का विषय था – ‘लोक प्रशासन का एक विषय के रूप में अध्ययन क्षेत्र ‘ आलोचनात्मक मूल्यांकन के रूप में रॉबर्ट टी. गोलम्ब्यूव्स्की (Robert T. Golembiewski) का कथन नवीन लोक प्रशासन के संदर्भ में सही है। ” शब्दों में क्रांति या उग्र – सुधारवाद, मगर कुशलताओं और तकनीकों में यह यथास्थितिवादी है।’ “
नवीन लोक (New Public Management – NPM )
नव लोक प्रबन्ध ने आज लोक प्रशासन में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया है।
इसका प्रारम्भिक विकास परवर्ती 1970 के दशक और प्रारम्भिक 1980 के दशक में अपेक्षाकृत न्यूनतमवादी, गैर-हस्तक्षेपवादी राज्य विचारधारा के रूप में हुआ, किन्तु एन. पी. एम. के बुनियादी दृष्टिकोण को बाद में अनेक देशों द्वारा अपना लिया गया जो आवश्यक नहीं कि इस विचारधारा का पालन करते थे।
नव लोक प्रबंध का विकास यूं तो 1980 के दशक में होने लगा था जब यू.के. में थैचरवाद व यू.एस.ए. में रीगनवाद के रूप में नव-उदारवाद व नव दक्षिण पंथ (New Rights Movement) आया । ‘थैचरवाद’ व ‘रीगनोमिक्स’ के अलावा न्यूजीलैण्ड में ‘रोजरनोमिक्स’ (न्यूजीलैण्ड के पूर्व वित्त मंत्री Roger Douglas) ने भी नवीन लोक प्रबंध को आगे बढ़ाया।
परन्तु इसने वास्तविक गति- 1991 के बाद पकड़ी जब पूरे विश्व में L.P.G. (उदारीकरण, निजीकरण व भूमण्डलीकरण) ने गति पकड़ी।
20वीं सदी के आठवें दशक में विश्व स्तर पर राज्य और नौकरशाही की भूमिका में अनेक परिवर्तन दृष्टिगोचर होने लगे जिनका प्रारम्भ ग्रेट ब्रिटेन में मार्गरेट थैचर तथा संयुक्त राज्य अमरीका में रोनाल्ड रीगन की आर्थिक नीतियों को माना जाता है। दोनों ने ही यह घोषणा की कि राज्य की भूमिका को सीमित किया जाना चाहिए और ऐसी परिस्थितियों के निर्माण
बल दिया जाना चाहिए जिनमें अर्थव्यवस्था में स्वतंत्र बाजार शक्तियों को पनपने का अवसर प्राप्त हो सके। सार्वजनिक नौकरशाही नियमों की कठोरता, कार्य विलम्बता, प्रशासनिकों की शुष्कता, सेवाओं की अपर्याप्तता और भ्रष्टाचार के कारण कड़ी आलोचना का मुद्दा बन गई थी । केडन ने लिखा है- “सभी नौकरशाही की अकर्मण्यता की आलोचना करते है। उसके खराब कामकाज, चुभते हुए फिजूल के प्रतिबंधों, न खत्म होने वाली लालफीताशाही, चिड़चिड़े अधिकारी, खराब सेवा व भ्रष्ट आचरण की अक्सर निन्दा की जाती है । “
गोरडन टुल्लॉक, एन्थनी डाउन्स तथा विलियम नि की कमियों को उजागर डाउन्स तथा विलियम निस्केनन जैसे अर्थशास्त्रियों ने नौकरशाही की क किया। 1965 में प्रकाशित अपनी कृति ‘दि पॉलिटिक्स ऑफ ब्यूरोक्रेसी’ में गोरडन टुल्लॉक ने प्रतिपादित किया कि नौकरशाही प्रतिस्पर्धा के अनुशासन से मुक्त है और अपने पदोन्नति स्वार्थ से अभिप्रेरित होती है। सरकार में
नौकरशाह की प्रोन्नति उसकी अपने वरिष्ठों को खुश करने की क्षमता पर निर्भर करती है। एन्थनी डाउन्स ने अपनी कृति ‘इन साइड ब्यूरोक्रेसी’ (1967) में रेखांकित किया कि व्यापार प्रशासन में एक व्यक्ति बाजार अनुशासन के अधीन होता है जबकि लोक प्रशासन में लोक नौकरशाही लाभ उद्देश्य न होने के कारण अनियंत्रित रहती है। उसने नौकरशाही के पाँच रूप बतलाए- 1. लता (Climber) 2. संरक्षक (Conserver) 3. कट्टरपंथी (Zealots) 4. अधिवक्ता (Advocates) तथा 5. राजमर्मज्ञ (Statesmen)। नौकरशाही की सर्वाधिक कटु आलोचना विलियम निस्केनन ने की जो एक अर्थशास्त्री है। अपनी कृति ‘ब्यूरोक्रेसी
एण्ड रिप्रजेण्टेटिव गवर्नमेंण्ट’ में नौकरशाही के रूपांकन एवं कार्यान्वयन की समस्याओं पर आर्थिक अवधारणाओं को लागू करते हुए निस्केनन ने आमूलचूल परिवर्तन लाने पर जोर दिया। नौकरशाही कार्यदक्षता बढ़ाने का उपचार निजी बाजार व्यवस्था में है जहाँ सार्वजनिक सेवाओं के लिए संरचना और प्रतिस्पर्धा विद्यमान है।
इसी पृष्ठभूमि में 1980 के दशक के अन्तिम वर्षों में लोक प्रशासन और अधिकारी तन्त्र के परम्परागत प्रतिमान की अपर्याप्तताओं के कारण नवीन प्रबन्धकीय दृष्टिकोण का उदय हुआ । इस प्रबन्धकीय दृष्टिकोण को अनेक नामों से सम्बोधित किया गया, जैसे ‘मैनेजरियलिज्म’ (Managerialism); ‘न्यू पब्लिक मैनेजमेंट’ (New Public Management); ‘मार्केट – बेस्ड पब्लिक ऐडमिनिस्ट्रेशन’ (Market based Public Administration) आदि।
परिवर्तन
5. फ्रैक मेरिनी द्वारा सम्पादित पुस्तक- ‘Towards a New Public Administration- Minnowbrook Perspective’1971 यह नवीन लोक प्रशासन पर प्रथम पाठ्य पुस्तक थी। –
6. ड्वाइट वाल्डो द्वारा सम्पादित पुस्तक- ‘Public Administration in a time of Turbulence’- 1971 (उथल-पुथल के काल में लोक प्रशासन ) ।
नवीन लोक प्रशासन के नारे व लक्ष्य
” वाल्डो के शब्दों में- ‘नवीन लोक प्रशासन मानकात्मक सिद्धांत (Normative theory), दर्शन (philosophy), सामाजिक प्रतिबद्धता (Social consern) तथा सक्रियतावाद (Activism) की दिशा में एक प्रकार का क्रांतिघोष है । ” जॉर्ज एच. फ्रेडरिक्सन ने 1980 में प्रकाशित अपनी प्रसिद्ध कृति “New public Administation” में लिखा है”यह जातिगत (Generic) की अपेक्षा जनोन्मुखी (Public) अधिक है, यह विवरणात्मक (Descriptive) कम और निर्देशात्मक (prescriptive) अधिक है, यह संस्था – उन्मुखी कम व ग्राहक – उन्मुखी अधिक है, यह तटस्थ कम और मूल्यपरक अधिक है, कम वैज्ञानिक नहीं है । “
नवीन लोक प्रशासन के चार नारे या लक्ष्य
प्रासंगिकता (
Relevance) इसका तात्पर्य है कि लोक प्रशासन का ज्ञान व शोध समाज की आवश्यकताओं के सन्दर्भ में ‘प्रासंगिक’ व ‘संगतिपूर्ण’ हो अर्थात् सामाजिक समस्याओं के निदान व सामाजिक परिवर्तनों के प्रति इसकी भूमिका महत्वपूर्ण हो । Rhay मूल्य (Value) नवीन लोक प्रशासन स्पष्ट रूप से आदर्शात्मक व मानकात्मक (Normative) है। यह परम्परागत लोक प्रशासन के मूल्यों को छुपाने तथा प्रक्रियात्मक तटस्थता को अस्वीकार करते हुए न्याय, समता, शोषण मुक्ति जैसे मूल्यों को महत्व देता है। निग्रो व निग्रोका उदय हुआ है, मूल्यों व नैतिकता के प्रशासन ने ‘प्रबंधोखी लोक प्रशासन’ और जब से नवीन लोक प्रशासन प्रश्न लोक प्रशासन के मुख्य विषय रहे है।” इस प्रकार नवीन लोक प्रशासन ‘व्यवहारवादी राजनीति विज्ञान’ के मूल्य निरपेक्ष दृष्टिकोण को खारिज कर दिया।
सामाजिक समता (Social Equality)
● नवीन लोक प्रशासन समाज के शोषित, वंचित व हाशियाकृत वर्गों के लिए सामाजिक न्याय व समानता की स्थापना करना चाहता है।
परिवर्तन (Change)
यह समाज में यथास्थिति शोषण, सामाजिक व आर्थिक विषमता को समाप्त कर समतायुक्त व शोषणविहिन समाज की स्थापना करना चाहता है।
रॉबर्ट टी. गोलम्ब्यूव्स्की (Robert T. Golembiewski) ने NPA के तीन विरोधी लक्ष्य (Anti Goals) बताये हैं
1. यह प्रत्यक्षवाद (Positivism),
तार्किकता व मूल्य
-निरपेक्षता का विरोधी है।
2. यह तकनीक विरोधी है। यह तकनीक पर मानव की भावनात्मकता – सृजनात्मकता का बलिदान नहीं चाहता। 3. यह नौकरशाही व पदसोपान विरोधी है।
नवीन लोक प्रशासन की विशेषताएँ –
(i) यह लोक प्रशासन की मूल्य मुक्त या मूल्य-निरपेक्ष व्याख्या को अस्वीकृत करता है। रॉबर्ट टी. गोलम्ब्यूव्स्की (Robert T. Golembiewski) के अनुसार- “नव लोक प्रशासन के भाष्यकारों का केन्द्रीय निशाना प्रत्यक्षवादी (Positivist) नस्ल का मूल्य-मुक्त (Value -free) विज्ञान है । “
4.
3.
1.
सामाजिक
2.
) यह संगठन के बारे में यांत्रिकता का विरोधी है। (iv) ) यह मानवीय संबंधों तथा प्रशासन एवं सामाजिक परिवर्तनों के बारे में नए सृजनात्मक दृष्टिकोण पर बल देता है। इसके प्रमुख अध्ययन बिन्दु है – सामाजिक समता, सहभागिता, सक्रियता, विकेन्द्रीकरण व मानवता के प्रति अगाध प्रेम।
(iii
(v
(vi) ये लोक प्रशासन को प्रगतिशील विज्ञान बनाना चाहते है।
(vii)
यह अन्तः अनुशासनात्मक है।
(viii)
जहाँ परम्परागत लोक प्रशासन नकारात्मक, तथ्यात्मक, मूल्य निरपेक्ष, तटस्थ व यथास्थितिवादी था वहीं नवीन लोकप्रशासन सकारात्मक, मूल्यात्मक, सामाजिक रूप से सक्रिय, मानवीय व भागीदारी है। अब तक तीन मिन्नोब्रुक सम्मेलन हो चुके हैं
1. प्रथम मिन्नोब्रुक सम्मेलन- 1968, अध्यक्ष- ड्वाइट वाल्डो। 2. द्वितीय मिन्नोब्रुक सम्मेलन- 1988, अध्यक्ष – जार्ज फ्रेडरिक्सन। 3. तृतीय मिन्नोब्रुक सम्मेलन – 2008, प्रथम मिन्नोब्रुक – 1968 अध्यक्ष- ड्वाइट् वाल्डो सहभागी-युवा Turks) राजनीति विज्ञानी तृतीय मिन्नोब्रुक – 2008 अधयक्ष – प्रो. रोजमैरी ओ’ लीरी इसका शैक्षणिक दायरा भी विस्तृत था (Young अध्यक्ष – प्रो. रोजमैरी ओ लीरी। मिन्नोब्रुक सम्मेलनों में अन्तर द्वितीय मिन्नोब्रुक – 1988 अध्यक्ष – जॉर्ज फ्रेडरिक्सन अकादमिक दायरा विस्तृत था- युवा व वरिष्ठ, राजनीति विज्ञानी, अर्थशास्त्री, लोक नीतिकर्ता सभी शामिल | विज्ञान विधि विधिक यह अमेरिकी समाज की उथल-पुथल के काल में आयोजित हुआ। यह सूचना क्रांति व मोबाइल क्रांति के दौर में आयोजित हुआ। इसमें प्रासंगिकता, मूल्यों, विश्वव्यापी सपी । आर्थिक इसमें बहुसंगठनात्मकता, साझा समता व परिवर्तन पर बल दिया गया। हुआ। दिया गया। यह व्यवहारवाद विरोधी व उग्र, क्रांतिकारी व अति आशावादी था। इसमें संवैधानिक व विधिक परिप्रेक्ष्य में नेतृत्व, प्रौद्योगिकी, नीति निर्माण तथा आर्थिक मुद्दों पर ध्यान दिया गया। इसमें ‘नियंत्रित आशावादिता’ थी।
इसकी थीम थी-“लोक प्रशासन, लोक प्रबंधा तथा लोक सेवा का सकालीन विश्व में भविष्य । “
फ्रेडरिक्सन–‘‘मिन्नोब्रुक प्रथम जहाँ कलह प्रिय, विवादास्पद, व क्रांतिकारी था वहीं मिन्नोब्रुक द्वितीय अधिक सौम्य व व्यवहारिक था।”
तीनों सम्मेलनों की चिन्तन का विषय था – ‘लोक प्रशासन का एक विषय के रूप में अध्ययन क्षेत्र ‘ आलोचनात्मक मूल्यांकन के रूप में रॉबर्ट टी. गोलम्ब्यूव्स्की (Robert T. Golembiewski) का कथन नवीन लोक प्रशासन के